(नायेदा जी की काव्य श्रंखला से प्रभावित) रिश्तों के रखाव में: मित्र के प्रति कृतज्ञता रिश्तों के रखाव में सहजता का अभाव क्यों? नहीं छोड़ा था साथ कर्ण ने, मित्र का, धर्मयुद्ध में | अधर्म का साथ, भाई का विरोध, हस्तिनापुर की राजसत्ता, यहाँ तक की कृष्ण का उपदेशपूर्ण सुझाब सब बौना पर गया भारी पड़ी मित्र के प्रति कृतज्ञता मगर हमारी सोचों में बसता मित्रता में भी हिसाब किताब क्यों? रिश्तों के रखाव में सहजता का अभाव क्यों?