ये और बात है कि आँखों से दूर होते ही उसने झटक कर अलग कर दिया होगा मुझे कि उसके हिसाब में जाने क्या होता है ज़रूरी, क्या नहीं? मेरे लिए सुबह उसकी छातियों के बीच अपना सर रख कर सुनी गयी धड़कन आखिरी ज़िंदा चीज़ की याद है।
12.
बुत बनती जा रही है बेचारी! वक्त का तकाजा था कि वीणा अग्निवीणा में तब्दील हो जाती मगर बन कर रह गई क्या-महज असाध्य वीणा! तमाम उम्र का हिसाब मांगती है जिन्दगी! तुम्हारे हिसाब में क्या जायेगा-सीढी और सीढी! और उसके हिसाब में सांप और सांप! वह तुम्हारी सीढी तुम उसके सांप!