व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
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व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।