| 11. | मानव योनि जीव की मध्य की अवस्था है, जिससे जीवात्मा ऊध्र्वगामी और अधोगामी दोनों ओर जा सकती है।
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| 12. | योगियों का कहना है कि जब तुम्हारी भावसमाधि लगती है तब तुम्हारे प्राण ऊध्र्वगामी हो जाते हैं ।
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| 13. | इसी का दूसरा ऊध्र्वगामी भाव है भग, जो व्यक्ति को भगवान बनाने का, मुक्त होने का, मार्ग देता है।
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| 14. | पूरी करने के लिए हमारे पास दो मार्ग हैं-सतोगुणी (ऊध्र्वगामी) अथवा तमोगुणी (अधोगामी) ।
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| 15. | हनुमानजी पर्वत सहित ऊध्र्वगामी होकर संकल्प मात्र से वायु देव के 48 स्वरूपों को पार करके 49 वें स्वरूप पर पहुंच गये।
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| 16. | चूंकि हमारे मन की गतियां दोनों ओर रहती हैं-ऊध्र्वगामी एवं अधोगामी, अत: प्रत्येक भाव भी दो रूप में दिखाई देता है।
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| 17. | इसी का दूसरा ऊध्र्वगामी भाव है भग, जो व्यक्ति को भगवान बनाने का, मुक्त होने का, मार्ग देता है।
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| 18. | चूंकि हमारे मन की गतियां दोनों ओर रहती हैं-ऊध्र्वगामी एवं अधोगामी, अत: प्रत्येक भाव भी दो रूप में दिखाई देता है।
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| 19. | सब तरह के जीवधारियों की तुलना में, मनुष्य अकेला प्राणी है, जो अधोगामी और ऊध्र्वगामी, दोनों तरह की यात्राएं कर सकता है।
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| 20. | यह ध्यान और इसके साथ लोक कल्याण का भाव, सकारात्मक नीयत, समष्टि भाव या वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा हर ध्यान को ऊध्र्वगामी बना देती हैं।
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