यथा-पूर्व के इन्द्र, अग्निकोण के वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्यकोण के नैऋत, पश्चिम के वरूण, वायु कोण के मरूत्, उत्तर के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधो दिशा के अनंत।
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' ' पुस्तक चर्चा '' के दौरान मुख्यवक्ता प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि ज्योति नारायण की काव्ययात्रा का मानचित्र आरंभिक दो पुस्तकों में क्षैतिज और सरलरेखीय रहने के बाद दो नई पुस्तकों में सहसा ऊर्ध्व दिशा की ओर गतिमान दिखाई देता है जो उनकी प्रगति और उन्नति का प्रमाण है.
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पेड़ों की यदि शीर्ष से काटते हैं (apically), तो वृक्ष सघन होकर बढ़ते हैं, और यदि अगल-बगल की टहनियां काटते हैं तो वो लम्बाई लेकर ऊर्ध्व दिशा में बढ़ते हैं, लेकिन काटने से बढ़ते ही हैं, इसलिए वृक्षों की शाखाएं काटने से वृक्ष को कोई नुकसान नहीं है।
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स्मृति-प्रिय सुंदरतम सजनी! आया जब से तुम से मिल कर, ले-ले चुम्बन आलिंगन भर, नहीं भूलता मैं वह रजनी-आच्छादित घन घोर घटा मैं, पानी बरस रहा था रिमझिम, चकमक चमके विधुत-स्वर्णिम, अग-जग था अचित निद्रा मैं ; आकर चुपके से पा अवसर, तुमने कितने धीरे-धीरे, हाथ बढ़ाकर मेरे नीरे, था खींचा जब मेरा अम्बर, पाकर किंचित चेतनता को, करवट बदली ली अंगडाई, उसनींदी बाहें फैलाई, ज्यों ही मैंने ऊर्ध्व दिशा को, आई पुलकित जल्दी इतनी, लिए अतुल