इस सिद्धांत के तहत, ब्याज, उस अवधि के लिए भुगतान है जिसके दौरान ऋण दाता को अपने धन से वंचित रहना पड़ता है.
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बैंक की जो राशि ऋण दाता को दी गई है उसकी वसूली नहीं होने से बैंक का मूलधन डूबने की कगार पर होता है।
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बाजार में नकदी की किल्लत और छोटी अवधि फंड की मांग बढ़ते देख ऋण दाता और निवेशक डेवलपरों से ज्यादा ब्याज मांग रहे हैं।
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कृषि भूमि निरंतर ऋण दाता के क़ब्ज़े में रहती है यहाँ तक कि क़र्ज़ दार पैसे के मालिक को उस के पैसे वापस लौटा दे।
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इब्ने क़ुदामा कहते हैं कि: उन का मतलब यह है कि: ” जब घर किसी क़र्ज में रेहन रखा हुआ हो जिस से ऋण दाता लाभ उठाता हो।
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हाँ, यदि ऋण दाता उसे अपने ऋण का भुगतान करने से पहले शदी करने की अनुमति प्रदान कर दें, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए यह जायज़ है।
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यदि यह लाभ उठाना किसी चीज़ के बदले में हो, उदाहरण के तौर पर ऋण दाता ने क़र्ज़ दार से घर को किराया पर ले लिया और बिना किसी पक्षपात के
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चूंकि इनमें से कोई ऋण दाता पुर्नसंरचना की प्रक्रिया को रोक सकता है और इंटरप्राइजेज को बंद करवाने के अलावा कारोबारी के लिए जेल की सजा भी सुनिश्चित करवा सकता है।
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इसके अतिरिक्त, रा.आ. बैंक क्षमता निर्माण के लिये ऋण दाता संस्थानों के कार्यपालकों के लिये और वरिष्ठ नागरिकों में योजना के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये नियमित आधार पर संगोष्ठियों/सम्मेलनों का आयोजन करता है.
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इस से ज्ञात होता है कि ऋण दाता से पक्षपात करना जाइज़ नहीं है, बल्कि उस से उसी के समान घरों की तरह किराया लिया जायेगा, अन्यथा दोनों ही सूद में फंस जायेंगे।