पं. दीनदयाल उपाध् यायजी ने राजनीति में पहली बार कोई सर्वांगपूर्ण दर्शन को राजनीति का अधिष्ठान बनाया जिसे आगे चलकर उन्होंने एकात्मवाद के रूप में सभी के समक्ष रखा।
12.
पर उसका यह फायदा भी हुआ कि उन्होंने भारतीय समाज में एक क्रांति भी लाई, जो एकात्मवाद को बढ़ावा देने के साथ जाति-व्यवस्था के विरुद्ध भी जनमत तैयार कर सकी।
13.
कभी स्कुल के क्लास में मैंने ये लाइन पढी थी, कबीर ने भारतीय दर्शन में अपने रहस्यवाद और एकात्मवाद का जो Fusion दिया उसे हमारे मास्टर जी पढाते थे और साथ ही साथ कबीर के रास्ते पर चलने की प्रेणना भी देते थे.
14.
एकात्मवाद या सवार्त्मवाद या अहिंसा-तत्व को वह आध्यात्मिक दृष्टि से नहीं, भौतिक दृष्टि से ही देखते थे ; यद्यपि इन तत्वों का इतिहास के किसी काल में भी आधिपत्य नहीं रहा, फिर भी मनुष्य-जाति के सांस्कृतिक विकास में उनका स्थान बड़े महत्व का है।
15.
वैसे निश्चित तौर पर वो अपने इन अनुवादित एवं व्याखित कि हुई पुस्तकों से निर्विवाद विद्वान नज़र आते हैं किन्तु वो इश्वर, आत्मा और प्रकृति के नवीन सिद्धांत एकात्मवाद पर बल देते नज़र आते हैं और साथ में पुराणियो की मूर्तिपूजा और अवतारवाद को समर्थन भी प्रदान करते हैं।
16.
पालिकाध्यक्ष मुके ” ा गौतम, पुरू ' ाोत्तम आचार्य, नंदकि ” ाोर “ ार्मा, छेलबिहारी “ ार्मा, सभासद विजय कि ” ाोर मिश्र, महे ” ा चन्द “ ार्मा, नगर अध्यक्ष कृ ' ण कुमार मोतीवाला आदि ने कहा कि जानता को जागरूक करने के उद्दे ” य से सभी को पं 0 दीनदयाल जी के विचारों का मनन करना चाहिए जिससे कार्यकर्ताओं के मन में एकात्मवाद की भावना जागे, और संगठन को मजूती मिले।