जो मोहब्बत अपने चाहने वालों को बेबस बना दे, वो मुझे कुबूल नही.... नहीं! एक दम नहीं! न तो मीरा को कुछ समझ आ रहा था और न ही अशोक को...
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“...सैनिकों को विवाह की अनुमति न थी, कारण यह कि वे किसी आकर्षण में बँधे बिना ही पूरे मनोयोग से युद्ध करें...” श्रुतियों को एक दम नहीं भूलें हैं वे महानुभाव जो इस दिन ढूंढ कर लोगों के विरूद्ध महायुद्ध जारी रखते हैं हर साल.
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जब हर विज्ञापन, हर फिल्म में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाएगा तो बलात्कार के ऐसे मालोंको बढ़ावा मिलना निश्चित है...... क्योंकि “ हादसा एक दम नहीं होता, वक़्त करता है परवरिश बरसों....! ” ऐसी निंदनीय घटनाओं केपीछे निश्चित तौर पर भी बाजारवाद ज़िम्मेदार है..
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मुझे आश्चर्य होता है कि बाल की खाल तक निकाल देने में समर्थ सेकुलरी लोगों को ये अंतर्विरोध समझ में क्यों नहीं आते? क्या घुट्टी में इतना दम है कि वह सोच समझ को ही कुन्द कर दे? नहीं यदि ऐसा होता तो दिमाग एक दम नहीं चलता. वास्तविकता यह है कि वे डरते हैं.