भारत के प्राचीन भाषा परिवार 13 ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा 14 मार्क्स और पिछड़े हुए समाज 15. भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश आदि।
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ऐतिहासिक पद्धतिःकिसी भाषा मे विभिन्न कालों में परिवर्तनों पर विचार करना एवं उन परिवर्तनों केसम्बन्ध में सिद्धांतो का निर्माण ही ऐतिहासिक भाषाविज्ञान का उद्देश्य होता है.
13.
फिलहाल तो प्राचीन ग्रंथों के उल्लेख और ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के आधार पर देशी-विदेशी विद्वान भारतीय पणियों, प्रकारांतर से फिनिशियों के रिश्ते स्थापित कर ही चुके हैं।
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किसी भाषा मे विभिन्न कालों में परिवर्तनों पर विचार करना एवं उन परिवर्तनों के सम्बन्ध में सिद्धांतो का निर्माण ही ऐतिहासिक भाषाविज्ञान का उद्देश्य होता है।
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किसी भाषा मे विभिन्न कालों में परिवर्तनों पर विचार करना एवं उन परिवर्तनों के सम्बन्ध में सिद्धांतो का निर्माण ही ऐतिहासिक भाषाविज्ञान का उद्देश्य होता है।
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फिलहाल तो प्राचीन ग्रंथों के उल्लेख और ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के आधार पर देशी-विदेशी विद्वान भारतीय पणियों, प्रकारांतर से फिनिशियों के रिश्ते स्थापित कर ही चुके हैं।
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19 वीं सदी का ऐतिहासिक भाषाविज्ञान सिर्फ ऊपर-ऊपर से ही ऐतिहासिक था, उसकी अंतर्वस्तु-जो उसके अध्ययन के ढांचे को निर्धारित करती थी-अनैतिहासिक थी।
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ऐतिहासिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी ‘दीन ' शब्द का विकास इंडो-ईरानी भाषा परिवार में हुआ नज़र आता है और अन्य भाषाओं में इसका व्यापक प्रसार हुआ है ।
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गोपियों के साथ कृष्ण की नृत्यलीला को उस दौर में रास कहा जाता था या नहीं, मामला यह है और यह विशुद्ध ऐतिहासिक भाषाविज्ञान से जुड़ा प्रश्न है।
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ऐतिहासिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी ‘ दीन ' शब्द का विकास इंडो-ईरानी भाषा परिवार में हुआ नज़र आता है और अन्य भाषाओं में इसका व्यापक प्रसार हुआ है ।