अनेक शोधपूर्ण लेखों के साथ एक पुस्तक ‘उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक भूगोल ' तथा ‘ऑखिन देखी' ;ललित निबन्ध एवं यात्रा संस्मरणद्ध प्रकाशित।
12.
विवेच्य नगर एवं जनपद के ऐतिहासिक भूगोल की निर्मित में साहित्यिक एवंपुरातात्विक दोनों प्रकार के साक्ष्यों का अनुपम योगदान रहा है.
13.
प्राचीन भारत के ऐतिहासिक भूगोल, भारतीय टैक्नोलॉजी का इतिहास, मध्यकालीन प्रशासनिक और आर्थिक इतिहास और साम्राज्यवाद जैसे विषयों पर उनकी विशेषज्ञता रही है।
14.
अनेक शोधपूर्ण लेखों के साथ एक पुस्तक ‘ उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक भूगोल ' तथा ‘ ऑखिन देखी ' ; ललित निबन्ध एवं यात्रा संस्मरणद्ध प्रकाशित।
15.
यह सत्य है कि उक्त विवरण नगर एवं जनपद की प्राचीनताएवं क्रमबद्धता का परिचय अवश्य देते हैं, किंतु ऐतिहासिक भूगोल का मात्रयही वण्र्य-विषय नहीं समझना चाहिए.
16.
Ref > विमलचरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, (उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, लखनऊ, प्रथम संस्करण, 1972 ई.)
17.
ऐतिहासिक भूगोल मुख्य रूप से किसी विशेष भूतकाल का भौगोलिक अध्ययन है, जिसकी विषयगत अर्हताएं स्थूल रूप से क्रमबद्ध एवं विस्तृत घटनाएं, मानवजीवन की घटनाओं में निहित हैं.
18.
अद्यावधि इस विषय पर जितने कार्य हुए हैं, उनका दे स्वरूप दृष्टिगत होताहै, प्रथम--प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल एवंद्वितीय--भारत के कतिपय प्रान्तों का ऐतिहासिक भूगोल.
19.
" भू" से संबंधित मानवीय जीवन की घटनाओं का एक क्रमबद्ध अतीत अध्ययन, जिससे राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि विभिन्न आयामों में नवीन मोड़दिखाई देता है, ऐतिहासिक भूगोल का विषयवस्तु स्वीकार किया जा सकता है.
20.
इसे किसी भी प्रकार से वंचित नहीं किया जा सकता है. भूगोल की भांति विगत कई वर्षों से ऐतिहासिक भूगोल के स्वरूप एवं उद्देश्यमें पर्याप्त गति से परिवर्तन एवं परिवर्धन होता जा रहा है, जैसाकि एच.