स्वर, कंठस्थ व्यंजन, तालव्य व्यंजन, मूर्धन्य व्यंजन, दंत्य व्यंजन, ओष्ठ्य व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन, ऊष्म व्यंजन, व अन्य व्यंजन।
12.
स्वर, कंठस्थ व्यंजन, तालव्य व्यंजन, मूर्धन्य व्यंजन, दंत्य व्यंजन, ओष्ठ्य व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन, ऊष्म व्यंजन, व अन्य व्यंजन।
13.
‘ शुद्धांध्र निर् ओष्ठ्य निर्वचन नैषधम् ' में ओष् ठ् य ध्वनियों (प, फ, ब, भ, म) का प्रयोग नहीं किया गया है।
14.
जुड़े अनुस्वार को ऋग्वैदीय शुद्धता के साथ बरतते हुए मराठी में जहाँ दन्त्योष्ठ्य व ध्वनि सुनाई पड़ती है वहीं द्रविड़ भाषाओं में यह ओष्ठ्य ध्वनि म में बदल जाती है।
15.
ओष्ठ्य-दोनों होंठों के साथ आकर स्पर्श से निर्माण होने वाले-प्, फ़्, ब्, भ्, म्भाषा में वर्णों का निर्धारण वैज्ञानिक तरीके से हुआ है, इसे समझने के लिये गणितीय संवर्ग के सिद्धांत और “द्वंद्वात्मक तर्क” की प्रक्रिया को समझना होगा।
16.
सि के साथ ऋग्वैदीय उच्चारण शैली और यजुर्वैदीय उच्चारणशैली नें सिंह को सिंग बना दिया जुड़े अनुस्वार को ऋग्वैदीय शुद्धता के साथ बरतते हुए मराठी में जहाँ दन्त्योष्ठ्य व ध्वनि सुनाई पड़ती है वहीं द्रविड़ भाषाओं में यह ओष्ठ्य ध्वनि म में बदल जाती है।
17.
ऐ स्वर्तंत्री के आधार, मूल यानि बेस से उपज रहा है ॐ में, शेष ओष्ठ्य हैं, लिप्स को बंद कीजियेगा यु की आकृति बन जायेगी, खोलियेगा होठों को, तमाम ध्वनियाँ जो ॐ से उपज्तीं हैं, एम् में संपन्न होती हैं.
18.
मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा, अनुस्वार, अनुनासिकता, कण्ठ्य, तालव्य, मूर्द्धन्य, ओष्ठ्य, वस्त्र्य, दन्त्य, दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ, श्वास की मात्रा, उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण, संयुक्त व्यंजन, विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।-
19.
उनकी प्रमुख प्रारंभिक प्रबंध रचनाएँ हैं-मार्कंडेय शतकम् (1868-69), गोपाल शतकम् (1868-69), रसिक जन मनोरंजनम् (1879-71), शुद्धांध्र निर् ओष्ठ्य निर्वचन नैषधम् (1871), शुद्धांध्र उत्तर रामायण (1872) आदि उल्लेखनीय हैं।
20.
पाठकगण कृपया एक बार फ़िर से दोहरा लें इसलिये निम्नांकित तालिका दे रहा हूँ-क् ख् ग् घ् ङ्-कण्ठ्य च् छ् ज् झ् ञ्-तालव्य ट् ठ् ड् ढ् ण्-मूर्धन्य त् थ् द् ध् न्-दन्त्य प् फ् ब् भ् म्-ओष्ठ्य