एक दिन अपनी निराशा में वह नदी किनारे बैठा था और अनमने भाव से अपने आस-पास की कंकडी, पत्थर आदि को उठा उठा कर नदी में फेंकता जा रहा था.
12.
उसने देखा कि जो कंकडी, पत्थर आदि वह नदी में फेंक रहा है, दर असल वे कंकडी, पत्थर नहीं, हीरे, मोती व अन्य बहुमूल्य पत्थर थे.
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उसने देखा कि जो कंकडी, पत्थर आदि वह नदी में फेंक रहा है, दर असल वे कंकडी, पत्थर नहीं, हीरे, मोती व अन्य बहुमूल्य पत्थर थे.
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एक दिन अपनी निराशा में वह नदी किनारे बैठा था और अनमने भाव से अपने आस-पास की कंकडी, पत्थर आदि को उठा उठा कर नदी में फेंकता जा रहा था.
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सबसे पहले उसके रुक्का पर नज़र गयी ‘ मैं अज्ञात-वास में हूँ ' इस ‘ मैं ' में हम सब शामिल हैं लिखा है उसमें मेरे अवचेतन पर जैसे कंकडी पड गयी हो रुक्के से जैसे तन्द्रा से उठी होऊ अभी अभी उचाट मन से अन्दर तूफानी हलचलों को ले खडी हूँ सपाट गुम हैं सारे शब्द
16.
बचपन में बडी मधुरता होती है, ढेरों गलतियं माफ होती है, सब की संवेदना साथ होती है, '' अरे क्या हुआ बच्चा है ''! तभी तो भगवान कृष्ण ने कन्हैया के अपने बाल रूप में खूब माखन चुरा चुरा कर खाया, गोपियों के साथ छेडखानी की, कंकडी से निषाना साधकर मटकियाॅं तोडीं, पर बेदाग बने रहे.
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वर्चुएल रईस. आज कितनी बार मरे! आज कितनी बार मरे! व्यंग्य आज कितनी बार मरे! विवके रंजन श्रीवास्तव रामपुर, जबलपुर. बचपन में बडी मधुरता होती है, ढेरों गलतियं माफ होती है, सब की संवेदना साथ होती है, ''अरे क्या हुआ बच्चा है''! तभी तो भगवान कृष्ण ने कन्हैया के अपने बाल रूप में खूब माखन चुरा चुरा कर खाया, गोपियों के साथ छेडखानी की, कंकडी से निषाना साधकर मटकियाॅं तोडीं, पर बेदाग बने रहे.