उसके चौथे माले के प्राईवेट वार्ड के कमरे में बाहर बडी खिडकी से इंदौर शहर पर झमझमाती बारीश की चादर में से कहीं कहीं बिजली की कडकडाहट और रोशनी को देख रहा हूं, कहीं कहीं अनंत चौदस के गणपति विसर्जन की झांकीयों की रोशनी का उजाला देख रहा हूं, और फ़िर भी सुबह के उस मंज़र का खयाल दिलोदिमाग से निकाल नहीं पा रहा हूं.
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आज अभी देर रात को उस अस्पताल में हूं जिसको आज से कई सालों पहले मैने ही बनाया था एक होटल के लिये. उसके चौथे माले के प्राईवेट वार्ड के कमरे में बाहर बडी खिडकी से इंदौर शहर पर झमझमाती बारीश की चादर में से कहीं कहीं बिजली की कडकडाहट और रोशनी को देख रहा हूं, कहीं कहीं अनंत चौदस के गणपति विसर्जन की झांकीयों की रोशनी का उजाला देख रहा हूं, और फ़िर भी सुबह के उस मंज़र का खयाल दिलोदिमाग से निकाल नहीं पा रहा हूं.