पिछले एक दशक से फिल्मों को किसी खास या एकाकी कलर टोन में शूट करने पर काफी जोर दिया जा रहा है, यानी पूरी की पूरी फिल्म की एक विशिष्ट रंगत।
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बच्चों को खासकर वृक्ष में छाया प्रकाश का कलर टोन, पैच एवं डार्क के बाद लाइट कलर, पेड़ों के तने एवं भवन में प्रेपोक्टिव आदि के बनाने की तकनीक बताया।
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बिल्कुल सही बात, इतना ही नहीं इन दिनों फिल्मों के दृश्यों को या कभी-कभी पूरी फिल्म को एक खास कलर टोन दिया जाता है वोह भी ज्यादा प्रभावशाली नहीं होता है.
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यह बताने की जरूरत नहीं है कि इन सब फिल्मों को किसी खास कलर टोन में शूट करने का उद्देश्य रंगों से खेलना मात्र नहीं था, बल्कि कहानी के मूड और भावनाओं को उभारना भी था।