इसके पहले अंक में थोड़े-से लेखक थे, महीने भर की तैयारी थी और दो साहित्य संपादकों और एक कला संपादक के अलावा कोई चौथा मददगार नहीं था.
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लेखक: रूचि शर्मा: रूचि शर्मा (कला संपादक) ग्वालियर से संबंध रखने वाली एक साधारण सी लड़की हूं जो सिर्फ शान्ति और अपने मालिक, अपने ईश्वर की उपस्थिती का एहसास चाहती है।
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प्रमोद सिंह और अनिल भी दिल्ली में ही थे, प्रमोद साँचा में कला संपादक थे और अनिल सिंह पब्लिक एशिया मैगज़ीन में सह सम्पादक थे, इन्हीं के भरोसे मैं दिल्ली आ गया था, पर इन दोनो से मिलना उतना हो नहीं पाता।
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प्रमोद सिंह और अनिल भी दिल्ली में ही थे, प्रमोद साँचा में कला संपादक थे और अनिल सिंह पब्लिक एशिया मैगज़ीन में सह सम्पादक थे, इन्हीं के भरोसे मैं दिल्ली आ गया था, पर इन दोनो से मिलना उतना हो नहीं पाता।
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बहरहाल, गोर्बाचेव की पेरेस्त्रोइका के असर में सीपीआईएमएल-लिबरेशन के भीतर शुरू हुई एक बहस का नतीजा यह निकला कि 1988 के अप्रैल-मई में वहां जनमत से एक साथ कई लोग-उसका इंजन समझे जाने वाले पार्टी पॉलिट ब्यूरो मेंबर प्रसन्न कुमार चौधरी, बोकारो की मजदूर पृष्ठभूमि से आए पत्रकार जगदीश और इलाहाबाद से ही गए कला संपादक प्रमोद सिंह (फिलहाल अजदक) एक साथ पत्रिका छोड़कर चले गए थे।
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ब हरहाल, गोर्बाचेव की पेरेस्त्रोइका के असर में सीपीआईएमएल-लिबरेशन के भीतर शुरू हुई एक बहस का नतीजा यह निकला कि 1988 के अप्रैल-मई में वहां जनमत से एक साथ कई लोग-उसका इंजन समझे जाने वाले पार्टी पॉलिट ब्यूरो मेंबर प्रसन्न कुमार चौधरी, बोकारो की मजदूर पृष्ठभूमि से आए पत्रकार जगदीश और इलाहाबाद से ही गए कला संपादक प्रमोद सिंह (फिलहाल अजदक) एक साथ पत्रिका छोड़कर चले गए थे।