कभी कल्पनाओ के पर लगाकर, कस्तूरी गंध सी, मन मे गुरूत्वाकर्षण उत्पन्नकरती हुई, जिंदगी कब इतने करीब आई, सें भी साक्षात्कार करा देती हैं..
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यहां तक कि कस्तूरी गंध प्राप्त करने के बाद भी वह आसानी से स्वयं को नहीं सौंपती यह कह कर कि दिन के प्रकाश में ‚ लोगों के देखने की पूरी सम्भावना के बावजूद मैथुन करना पाशविक है ‚
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भीतर तलाश करती रहती हूँ तेरी वह कस्तूरी गंध जो वक़्त के साथ साथ तेरे आने की आस लिए कहीं धूमिल सी हो कर खोने लगी है अपना अस्तित्व!!! इन्तजार होले से धीरे से सरकती शाम की यह बेला कुछ ऐसे ही राह तकती है जैसे मन के भीतर कहीं गहरे एहसास पथराये से रहते हैं और तलाश करते हैं किसी राम की पर...
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मन में कहदूं ‘ मोहिनी! … कौन तुम्हारी गंध अपनी सांसों में उतार निहाल नहीं होना चाहेगा? ' तुम्हारे लोल, लुभावने कस्तूरी गंध भरे साहचर्य के लिए किसका मन नहीं तरसेगा? मेरी वाणी मुखरित हुई ‘ यू आर लवली … प्रेटी … नो … नो … वंडरफुल … एक्सीलेंट … ग्रेट … ' वह निस्सीम पुलक में हहरा रही थी समुद्री वेगवती, चंचल, उफान भरी लहरों की तरह।
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सीली दीवार ', ' इस द्वार से उस द्वार ', ' सुलगती जिंदगी के धुएं ', ' क्या गुनाह किया ', ' कस्तूरी गंध ', ' कंक्रीट की फसल ', ' डूबते सूरज से ', ' सदियों तक शायद ', ' दर्द की स्याही ', ' मिट्ठू की मिट्टी ', ' अंजुरी भर-भर ', ' मोर्चे पर स्त्री ' और ' हक गढ़ती औरत ' अंजु की प्रमुख कृतियां हैं.