| 11. | मत ज़्यादा सच बोल क़लम / राजेन्द्र स्वर्णकार
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| 12. | सूरह क़लम-६ ८ पारा २ ९
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| 13. | अब त्याग क़लम हाथों में खड्ग उठाओ तुम
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| 14. | क़लम के सिपाही जी क्यों दुःखी होते हो?
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| 15. | हाथ में क़लम थाम रखी है तो निस्संदेह
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| 16. | ‘क़ासिम‘ मेरा क़लम चूमोइन दिनों मेरी शायरी है
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| 17. | १७६८. मेरी क़लम अशआर लिखती ही चली गयी-
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| 18. | AMलहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता
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| 19. | चल पड़ी ये क़लम अब न रूक पायेगी
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| 20. | क्या क़लम बांधते हैं? क़लम परिवर्धन नहीं करती।
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