आँखों में रात का काजल लगाना, आँगन में ठण्डे सवेरे बिछा देना, पैरों में मेहन्दी की अगन लगा देना जैसी तुलनाएँ व उपमाएँ एक वही तो देते आये हैं।
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पर उसकी condition है, शर्त्त है: प्रेमांजनच्छुरितभक्तिविलोचनेन (ब्रह्म-संहिता) जी हाँ, आपको अपनी आँखों में प्रेम का काजल लगाना होगा तो भगवान नजर आ जायेंगे.
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अधिकतर नारी प्रतिमाओं के माँग में सिंदूर भरना, आँखों में काजल लगाना, होंठों को रंगों से लाल करना, पाँव में और हथेलियों में रंग लगाना पाया गया है।
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आँखों में रात का काजल लगाना, आँगन में ठण्डे सवेरे बिछा देना, पैरों में मेहन्दी की अगन लगा देना जैसी तुलनाएँ व उपमाएँ एक वही तो देते आये हैं।
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रोगी व्यक्ति को अपनी आंखों को गुलाब जल या फिटकरी के पानी से दिन में 2-3 बार धोना चाहिए तथा इसके बाद पलकों को आपस में चिपकने से बचाने के लिए अच्छी किस्म की बैसलीन या शुद्ध घी का काजल लगाना चाहिए।
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माँ आज बहुत याद आ रही है, आज माँ का काजल लगाना भी याद आ रहा है, आज बचपन बहुत याद आ रहा है, साथ याद आ रही है एक एक बात, जो बीते ज़माने की है, पर लगती बिल्कुल अभी की हैं |
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आज मैं खुद को ही जन्म देना चाहती हूँ मैं खुद को अपनी ही साँसें उधार देना चाहती हूँ मैं खुद के सीने में अपनी ही धड़कनों की आवारा आहटें सुनना चाहती हूँ मैं खुद की आँखों में अपने ही अंधेरों का काजल लगाना चाहती हूँ अपने माथे अपने ही उजालें धर देना चाहती हूँ मैं खुद के कानों में खुद की वो ही पुरानी छन्न सी उमगती हंसी भर देना चाहती हूँ आज मैं अपनी इस देह में अपनी ही रूह भरना चाहती हूँ