प्राणेर व्यथा और कारुणिकता! क्या कहें और क्या न कहें! कितनी विसंगितियाँ विछोह और विडम्बनाओं में बसा पला बढ़ा है हमारा जार जवार...कलेजा मुंह को आता है..
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‘बिराण बनै गेछ, यो बिराण बनै गेछ, यो मालपा को डाना, हे काली मैया तेरी महिमा छ महान,' गीत आज भी पूरी कारुणिकता के साथ उत्तराखण्ड में सुना जाता है।
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कहते हैं कि हजारो वर्षों तक लोककंठ में रहने के पश्चात यह गाथा वाल्मीकि द्वारा पहली बार स्वरबद्ध हुई-क्रौंचवध के दृश्य की कारुणिकता और शोक से उपजा श्लोक छ्न्दगान।
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इसी कारण जाग उठती है अन्तर की कारुणिकता, समवेदना, सहानुभूति, जीवों में दया, नारी-समाज के प्रति सम्मान-भावना एवं विश्व-बन्धुता की भावधारा-जैसी महनीय मानवता के संग सद्गु।णावली की आत्मीयता।
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प्राणेर व्यथा और कारुणिकता! क्या कहें और क्या न कहें! कितनी विसंगितियाँ विछोह और विडम्बनाओं में बसा पला बढ़ा है हमारा जार जवा र... कलेजा मुंह को आता है..
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मसीह और बुद्ध की बातें करते समय वह सदैव भावुक हो उठते हैं-उनके शब्दों मे न तो उत्साह होता है और न ही कारुणिकता और न हीं हृदयाग्नि की एक भी स्फुलिं ग.
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‘ बिराण बनै गेछ, यो बिराण बनै गेछ, यो मालपा को डाना, हे काली मैया तेरी महिमा छ महान, ' गीत आज भी पूरी कारुणिकता के साथ उत्तराखण्ड में सुना जाता है।
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‘ बिराण बनै गेछ, यो बिराण बनै गेछ, यो मालपा को डाना, हे काली मैया तेरी महिमा छ महान, ' गीत आज भी पूरी कारुणिकता के साथ उत्तराखण्ड में सुना जाता है।
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अंत आते आते इतनी कारुणिकता आ जाती है कि सप्तपदी के अग्निकुंड की दाहकता पिता के हृदय में पहले ही व्याप्त हो जाती है, गीत अचानक ही समाप्त हो जाता है-कहने सुनने को कुछ बचा ही नहीं!
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तब आपको कश्मीर के सन्नाटे या शोर के पीछे की वह कारुणिकता, वह त्रासदी दिखाई पड़ती है जिसमें जले हुए घर हैं, सूखे हुए ख़ून सी सूख चुली रुलाइयां हैं और ताजा गिरे खून को साफ करने की नाकाम सी कोशिश है।