अपने पर सन्देह मत कीजिए, अपनी कार्य-शक्ति पर कभी संशय मत कीजिए, तब आप जिस काम को भी हाथ मेंलेंगे उसी में सफल और विजयी होंगे.
12.
लेकिन जैसा कि मैंने बताया कि यह एक ‘ स्वतंत्र ' संस्था नहीं है, इसलिए इसे कार्य-शक्ति, फंडिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा अन्य सुविधाओं के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है.
13.
अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का ऐसा संकुचन करना कि वे उसकी कार्य-शक्ति का दमन न करते हुए उसे कल्याण के मार्ग पर चलाने में सहायक हों, यही आदर्श व्यवस्था है और यही चरित्र-निर्माण की प्रस्तावना है।
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अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का ऐसा संकुचन करना कि वे उसकी कार्य-शक्ति का दमन न करते हुए उसे कल्याण के मार्ग पर चलाने में सहायक हों, यही आदर्श व्यवस्था है और यही चरित्र-निर्माण की प्रस्तावना है।
15.
मगर संन्यासी के उस गर्म भाषण से एक दिल भी न पिघला क्योंकि वह पत्थर के दिल थे जिसमें दर्द और घुलावट न थी, जिसमें सदिच्छा थी मगर कार्य-शक्ति न थी, जिसमें बच्चों की सी इच्छा थी मर्दो का-सा इरादा न था।
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मगर संन्यासी के उस गर्म भाषण से एक दिल भी न पिघला क्योंकि वह पत्थर के दिल थे जिसमें दर्द और घुलावट न थी, जिसमें सदिच्छा थी मगर कार्य-शक्ति न थी, जिसमें बच्चों की सी इच्छा थी मर्दो का-सा इरादा न था।
17.
जब उफनता और बलबलाता जीवन हारकर दम तोड़ देता है, तो क्या सचमुच हमारे मन में यह बात ज़ोर से नीहं उठती कि ‘ इसको बचाने का क्या कोई रास्ता है ही नहीं? क्या ऐसा अमूल्य जीवन बच नहीं सकता? ' और यही प्रश्न हमें सुन्दरतक जीवन-निर्माण होता-उस समय उसके प्रति अनुरक्ति और सहानुभूति ; उन मारनेवाली परिस्थितियों और शक्तियों के प्रति एक उदात्त क्रोध और सात्त्विक घृणा जगाकर हमारी कार्य-शक्ति को उद्वेलित करती है।
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ऊपर लिखा जा चूका है कि राजपूतों को प्रभावहीन बनाने की यह पृष्ठ-भूमि भारत के स्वतंत्र होने के पहले ही बना ली गई थी | अतएव जब भारत से अंग्रेजी सत्ता उठा ली गई तब पहले से ही राजनैतिक दृष्टि से निराश, कार्य-शक्ति की दृष्टि से अचेत, सामाजिक दृष्टि से विश्रंखलित, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निराश, कार्य-शक्ति की दृष्टि से परावलम्बी और बौद्धिक दृष्टि से पंगु राजपूत के सर्वव्यापी प्रभाव को समाप्त करने में अधिक कौशल और परिश्रम नही करना पड़ा |
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ऊपर लिखा जा चूका है कि राजपूतों को प्रभावहीन बनाने की यह पृष्ठ-भूमि भारत के स्वतंत्र होने के पहले ही बना ली गई थी | अतएव जब भारत से अंग्रेजी सत्ता उठा ली गई तब पहले से ही राजनैतिक दृष्टि से निराश, कार्य-शक्ति की दृष्टि से अचेत, सामाजिक दृष्टि से विश्रंखलित, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निराश, कार्य-शक्ति की दृष्टि से परावलम्बी और बौद्धिक दृष्टि से पंगु राजपूत के सर्वव्यापी प्रभाव को समाप्त करने में अधिक कौशल और परिश्रम नही करना पड़ा |