यदि यह भी मान लिया जाए कि 8 साल पहले जो कुछ भी ऐसा जो अवर्णीय है वह राज्य में हुआ और उस पर यह काव्यात्मक न्याय करने की शैली है तो भी, यह एक पक्षीय धर्मनिरपेक्षता का बहाना नहीं बन सकती.
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अनूप भार्गव जी के ‘ अंतिम शब्द ' के बाद भी सृजन शिल्पी की उस पोस्ट पर टिप्पणियां आ ही रहीं हैं और अब तो अलग से यह पोस्ट ‘ काव्यात्मक न्याय और अंतरजालीय चेंगड़े ' भी लिखी जा चुकी है.
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इसे आप काव्यात्मक न्याय या “पोयेटिक जस्टिस” कह सकते हैं कि सब कुछ होते हुए भी अहंकार के जिस दुर्गुण के कारण राजीव को बाबा की शरण में जाना पड़ा, आज बाबा भी उसी वजह से दुर्दशा के दिन देख रहे हैं।
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यदि यह भी मान लिया जाए कि 8 साल पहले जो कुछ भी ऐसा जो अवर्णीय है वह राज्य में हुआ और उस पर यह काव्यात्मक न्याय करने की शैली है तो भी, यह एक पक्षीय धर्मनिरपेक्षता का बहाना नहीं बन सकती.