घर एवं घर में उपयोग आने वाली चींजें (चौखट, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि), मेज, कुर्सी, पलंग, सोफा, गाड़ियों के लकड़ी के ढांचे (जैसे बैलगाड़ी) आदि बनाने के लिये काष्ठकार (बढ़ई) की जरूरत होती है।
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घर एवं घर में उपयोग आने वाली चींजें (चौखट, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि), मेज, कुर्सी, पलंग, सोफा, गाड़ियों के लकड़ी के ढांचे (जैसे बैलगाड़ी) आदि बनाने के लिये काष्ठकार (बढ़ई की जरूरत होती है।
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दूसरे हैं दस्तकार, हस्तशिल्पी यथा काष्ठकार, बुनकर, चर्मकार, दुकानदार, राज-मिस्त्री छोटे व्यवसायी, जो उत्पादन विपणन के लिए जिम्मेदार हैं और सही मायने में किसी भी समाज अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं.
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दूसरे हैं दस्तकार, हस्तशिल्पी यथा काष्ठकार, बुनकर, चर्मकार, दुकानदार, राज-मिस्त्री छोटे व्यवसायी, जो उत्पादन विपणन के लिए जिम्मेदार हैं और सही मायने में किसी भी समाज अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं.
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प्लेटो ने ‘ रिपब्लिक ' में चर्मकार, काष्ठकार, बुनकर, योद्धा, नाविक, चिकित्सक, राजमिस्त्री आदि भिन्न-भिन्न शिल्पकर्मियों तथा उनके व्यवसायों का उल्लेख किया है, किंतु उनके बीच न तो किसी प्रकार का आर्थिक विभाजन अथवा स्तरीकरण है, न ही उन्हें जन्म के आधार पर उसी व्यवसाय में रहने के लिए बाध्य किया जाता था-जिस प्रकार भारत में वेद एवं मनुस्मृति को आधार बनाकर समाज का वर्ग-विभाजन किया गया, जिससे भारतीय समाज में ऊंच-नीच की धारणा बलवती हुई.