हमें जिस चीज की फौरी जरूरत है वह है नजरिए में बदलाव लाना और किसानों व गैर-सरकारी संगठनों की बात पर ध्यान देना, जो कृषि के पुनरुद्धार के लिए जीजान से जुटे हैं.
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उम्दा लेखन करते रहें, हरेक की बात पर ध्यान देना जरूरी नहीं है… मुझे भी लोग “संघी” और हिन्दुत्ववादी कहते हैं… पुनर्स्वागत है शास्त्री जी, सिक्कों के बारे में आपके संकलन निश्चित ही पठनीय होंगे।
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दिनेश जी का अंदाज़े-बयां वाकई काफी हटकर है > आपको तसनीम जी की बात पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि कुछ जगह प्रूफ की गलतियाँ रह गई हैं > इन्हें ज़रूर सुधार लें > और तिलक राज जी ने भी ' ग़ज़ल का कारखाना ' की बात खूब की है, लेकिन इस मजाक से हटकर देखें, तो बेहिचक कहा जा सकता है कि दिनेश ठाकुर जी भरपूर संभावनाओं वाले नौजवान शायर हैं > बधाई! बधाई!! तृप्ति भटनागर