यही कारण है कि गाँधी ने बड़ी चालाकी से खादी व ग्रामोद्योग में साम्यवाद के संशोधित प्रारुप को लागू कर दिया क्योंकि खादी व ग्रामोद्योग में गाँधीजी उत्पादनकर्ता की स्वामित्व की बात करते हैं और अतिरिक्त उत्पादन का सामुदायिक वितरण की पैरवी करते हैं जो कि मौलिक रुप से मार्क्स का सोच है लेकिन मार्क्स का ध्यान ग्रामोद्योग (कुटीर और लघु उद्योग) की ओर नहीं गया इसलिए गाँधी ने वहाँ पर संशोधित साम्यवाद को अपना लिया।