कुठाली में देश की तकदीर ढली होती है यह मेरी बंदूक आपके बैंकों के सेफ, और पहाड उल् टानेवाली मशीनें, सब लोहे के हैं शहर से वीराने तक हर फर्क बहन से वेश् या तक हर एहसास मालिक से मुलाजिम तक हर रिश् ता बिल से कानून तक हर सफर शोषणतंत्र से इन् कलाब तक हर इतिहास जंगल, कोठरियों व झोपडियों से लेकर इंटरोगेशन तक हर मुकाम सब लोहे के हैं
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यह जनता का लोहा था, जिस लोहे में उसकी आकांक्षा, प्रतिरोध और उसके नैतिक मानवीय मूल्यों बड़ी मजबूती से मुखरित थे-मैंने लोहा खाया है / आप लोहे की बात करते हो / लोहा जब पिघलता है / तो भाप नहीं निकलती / जब कुठाली उठानेवालों के दिलों से / भाप निकलती है / तो लोहा पिघल जाता है / पिघले हुए लोहे को / किसी भी आकार में / ढाला जा सकता है।
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इस पर से थाना कोतवाली में अपराध क्रमांक 16 / 11 धारा 147, 148, 294, 323, 452, 506 बी, 427, 342 ता 0 हि 0 एवं 3 (1) 10 एससी / एसटी का अपराध आरोपी सुन्दर नाई, कुठाली कोल, गुड्डू महार, ददलू महरा, गोविन्द महरा, दादू राम महरा, रामनरेश महरा, दादू राम कोल, संपत बैगा, सीताराम महरा, शिव शंकर महरा, रामदयाल महरा, सुखलाल कोल एवं अन्य 10-15 लोग के विरुद्ध पंजीबद्ध किया गया।