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कुष्ठी उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी कें साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो ।

12.तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी कें साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो ।

13.इस बात पर पिता अत्यधिक क्रुद्ध हुए, और उसे कहा, की हे दुष्ट पुत्री, तूने आज भगवती का पूजन नहीं किया, जिसके लिए मैं किसी कुष्ठी दरिद्र से तेरा ब्याह करूंगा ।

14.आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नही किया, इस कारण मै किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बडा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूँ।

15.श्री गुरु अर्जुन देव जी ने जब ऐसे कटु वचन सुने तो बड़े सतिगुरुों की निंदा सुनी, तब वह सहन न कर सके और क्रोध में आकर वचन किया-' सत्ता और बलवंड आप कुष्ठी हो गए हो, यह कुष्ठ आपको तंग करेगा | ' यह वचन करके गुरु जी अपने दरबार में आ गए |

16.उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देंखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नही किया, इस कारण मै किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बडा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूँ।

17.सौ उग्रकर्मा प्राणी सकाम सत्कर्मों को भोगने के लिये स्वर्ग में और पापकर्मों को भोगने के लिये नरक में जाता है, परन्तु भोगते-भोगते जब वे कर्म उग्रकोती के नहीं रहते किन्तु मृत्युलोक में भोग सकने योग्य रह जाते हैं तब उस जीव का जन्म अवशिष्ट सत्कर्मों के उपभोग के निमित्त ब्रह्मवेत्ता योगी, धनी-मानी के रूप में होता है और दुष्कर्मों के उपभोग के लिये रूगण, कुष्ठी चाण्डालादि के रूप में होता है इस आशय की छान्दोग्य की श्रुति प्रसिद्ध है-

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