पूर्वानुराग कारण की दृष्टि से गुणश्रवण, प्रत्यक्षदर्शन, चित्रदर्शन, स्वप्न तथा इंद्रजाल-दर्शन-जन्य एवं राग स्थिरता और चमक के आधार पर नीली, कुसुंभ तथा मंजिष्ठा नामक भेदों में बाँटा जाता है।
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पूर्वानुराग कारण की दृष्टि से गुणश्रवण, प्रत्यक्षदर्शन, चित्रदर्शन, स्वप्न तथा इंद्रजाल-दर्शन-जन्य एवं राग स्थिरता और चमक के आधार पर नीली, कुसुंभ तथा मंजिष्ठा नामक भेदों में बाँटा जाता है।
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पूर्वानुराग कारण की दृष्टि से गुणश्रवण, प्रत्यक्षदर्शन, चित्रदर्शन, स्वप्न तथा इंद्रजाल-दर्शन-जन्य एवं राग स्थिरता और चमक के आधार पर नीली, कुसुंभ तथा मंजिष्ठा नामक भेदों में बाँटा जाता है।
14.
२.-छाया में सुखाये हुए आक के फूल, यवक्षार, कलमीशोरा और कुसुंभ बीज-इन सब औषधों को समान भाग लेकर हरी दूब (घास) के रस में खरल करें ।
15.
ईख, रसराज (पारा), निष्पाव (सेम), राजधान्य (शालि या अगहनी), गोक्षीर (क्षीरजीरक), कुसुंभ (कुसुम नामक पुष्प), कुंकुम (केसर) तथा नमक ये आठ वस्तुएं अर्पित करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इन्हें ' सौभाग्याष्टक ' की संज्ञा दी गई है।
16.
जला कर प्राप्त किया जाता है या फिर दिये की कालिख को गोबर के साथ मिला कर तैयार किया जाता है, पीला रंग हल्दी और चूने को बरगद की पत्तियों के दूध में मिला कर तैयार किया जाता है पलाश या टेसू के फूल से नारंगी, कुसुंभ के फूलों से लाल और बेल की पत्तियों से हरा रंग बनाया जाता है।
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काला रंग ज्वार को जला कर प्राप्त किया जाता है या फिर दिये की कालिख को गोबर के साथ मिला कर तैयार किया जाता है, पीला रंग हल्दी और चूने को बरगद की पत्तियों के दूध में मिला कर तैयार किया जाता है पलाश या टेसू के फूल से नारंगी, कुसुंभ के फूलों से लाल और बेल की पत्तियों से हरा रंग बनाया जाता है।