11वीं सदी में यह भारत का सबसे बड़ा कृत्रिम जलाशय था और इसका क्षेत्रफल 65, 000 हेक्टेयर से ज्यादा था और इसमें 365 स्रोतों और झरनों का पानी आता था।
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सेक्टर १ में भी घूमने फिरने का एक लोकप्रिय स्थान, सुखनाझील, एक कृत्रिम जलाशय है, आप शहर के निवासियों को नदी के किनारे चहलकदमी करते अथवा टहलते हुए पा सकते हैं।
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एक समय था, जब मछलियों को तालाब, नदी या सागर के भरोसे रखा जाता था, परंतु बदलते वैज्ञानिक परिवेश में इसके लिए कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप में नदी, तालाब और सागर में होती हैं।
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इन भ्रंशों के सहारे प्राकृतिक कारणों में भूकम्प एवं बाढ़, बादल फटना तथा मानव कृत गतिविधियों-सड़क, पुल निर्माण में विस्फोटकों का प्रयोग, कृत्रिम जलाशय निर्माण, नहरों का निर्माण, सुरंग खोदना, वनों का दोहन, खनिजों का अनियोजित दोहन आदि के कारण भूस्खलन, बाढ़ वनाग्नि, जैसी आपदाओं से प्रति वर्ष सामना करना पड़ता है।
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इन भ्रंशों के सहारे प्राकृतिक कारणों में भूकम्प एवं बाढ़, बादल फटना तथा मानव कृत गतिविधियों-सड़क, पुल निर्माण में विस्फोटकों का प्रयोग, कृत्रिम जलाशय निर्माण, नहरों का निर्माण, सुरंग खोदना, वनों का दोहन, खनिजों का अनियोजित दोहन आदि के कारण भूस्खलन, बाढ़ वनाग्नि, जैसी आपदाओं से प्रति वर्ष सामना करना पड़ता है।
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उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद 1000 मेगावाट क्षमता की टिहरी बांध परियोजना प्रथम चरण, 400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग तथा 180 मेगावाट की धौलीगंगा परियोजना पूरी हुई है और इनमें से अब तक ऐतिहासिक टिहरी नगर के अलावा टिहरी जिले के 24 गांव पूर्ण रूप से तथा 127 गांव आंशिक तौर से विशाल कृत्रिम जलाशय में समा चुके हैं.