चूहों के कृपिका में लचीलापन लाकर (तथा जीन मेडिटेशन द्वारा फेफड़े के ऊतकों को दुबारा पैदा कर) वातस्फीति के प्रभाव को उलट देती है.
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चूहों के कृपिका में लचीलापन लाकर (तथा जीन मेडिटेशन द्वारा फेफड़े के ऊतकों को दुबारा पैदा कर) वातस्फीति के प्रभाव को उलट देती है.[6][7]
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जब सिगरेट के धुएं जैसी विषाक्त चीजें सांस लेते समय फेफड़े में जाती है तो उसके नुकसानदायक कण वहां उत्तेजक प्रतिक्रिया होने के कारण कृपिका में फंस जाते हैं.
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जब सिगरेट के धुएं जैसी विषाक्त चीजें सांस लेते समय फेफड़े में जाती है तो उसके नुकसानदायक कण वहां उत्तेजक प्रतिक्रिया होने के कारण कृपिका में फंस जाते हैं.
15.
वातस्फीति कृपिका को पोषित करने वाली संरचना के नष्ट होने के कारण होनेवाला फेफड़े के ऊतक का रोग है, कुछ मामलों में अल्फा 1-एंटिट्रिप्सिन के कार्य की कमी के कारण भी यह हो जाता है.
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वातस्फीति कृपिका को पोषित करने वाली संरचना के नष्ट होने के कारण होनेवाला फेफड़े के ऊतक का रोग है, कुछ मामलों में अल्फा 1-एंटिट्रिप्सिन के कार्य की कमी के कारण भी यह हो जाता है.
17.
चूंकि कृपिका लागातार खराब होती जाती है, इसलिए अधिक हवा क्रमश: नष्ट हो रहे उसके सतह क्षेत्र की क्षतिपूर्ति नहीं कर पाती, और शरीर खून में पर्याप्त ऑक्सीजन की अधिकता को बरकरार रखने में सक्षम नहीं हो पाता.
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चूंकि कृपिका लागातार खराब होती जाती है, इसलिए अधिक हवा क्रमश: नष्ट हो रहे उसके सतह क्षेत्र की क्षतिपूर्ति नहीं कर पाती, और शरीर खून में पर्याप्त ऑक्सीजन की अधिकता को बरकरार रखने में सक्षम नहीं हो पाता.
19.
वातस्फीति फेफड़ों की एक प्रतिरोधी बीमारी को कहा जाता है क्योंकि कृपिका नामक छोटे वायुमार्गों के आसपास के फेफड़े के ऊतक का विनाश इन वायु मार्गों को सांस छोड़ते समय अपने कार्यात्मक आकार को बनाए रखने में अक्षम बना देता है.
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वातस्फीति फेफड़ों की एक प्रतिरोधी बीमारी को कहा जाता है क्योंकि कृपिका नामक छोटे वायुमार्गों के आसपास के फेफड़े के ऊतक का विनाश इन वायु मार्गों को सांस छोड़ते समय अपने कार्यात्मक आकार को बनाए रखने में अक्षम बना देता है.