मैंने अवसर पाकर उससे खुल कर बात की और उसे समझाया कि हमारे बीच जो हुआ सो हुआ लेकिन इससे नील और उसके रिश्ते में कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए, मैं इस बात का ख्याल रखता कि मेरे बेटे और बहू को अपने जीवन का पूरा लुत्फ़ उठाने का भरपूर समय मिले।
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नहीं तो प्रश्न ही नहीं उठता | यानी, आप खुद से लड़ रहें हैं | संबंध की आवश्यकता लग रही है, लेकिन ऊपर से आपका अहंकार आ रहा है | नहीं मुझे आवश्यकता नहीं है | इसलिए मैं कहता हूँ, कि संबंध रहें, या न रहें, आपको कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये | आप विश्राम करिये, अपने में | ठीक है न?
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हालांकि आम आदमी को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये, क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही कहा है यह “चोरों को पड़ गये मोर” वाला मामला है, क्योंकि आज की तारीख में मन्दिरों में बढती दानदाताओं की भीड़ का नब्बे प्रतिशत हिस्सा उन लोगों का है जो भ्रष्ट, अनैतिक और गलत रास्तों से पैसा कमाते हैं और फ़िर अपनी अन्तरात्मा(?) पर पडे बोझ को कम करने के लिये भगवान को भी रिश्वत देते हैं...
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हालांकि आम आदमी को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये, क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही कहा है यह “ चोरों को पड़ गये मोर ” वाला मामला है, क्योंकि आज की तारीख में मन्दिरों में बढती दानदाताओं की भीड़ का नब्बे प्रतिशत हिस्सा उन लोगों का है जो भ्रष्ट, अनैतिक और गलत रास्तों से पैसा कमाते हैं और फ़िर अपनी अन्तरात्मा (?) पर पडे बोझ को कम करने के लिये भगवान को भी रिश्वत देते हैं...