उदाहरण के लिए, उन मामलों में पित्तप्रकृति (कोपशील) मनुष्य की सक्रियता तब अधिक कारगर सिद्ध होती है, जब वह किसी श्लैष्मिक प्रकृति (शीतस्वभाव) या वातप्रकृति (विषादी) व्यक्ति के साथ मिलकर काम करता है।
12.
प्रबल संतुलित सफूर्तिशील प्रकार की तंत्रिका-सक्रियता का संबंध रक्तप्रकृति (उत्साही स्वभाव) से है, प्रबल संतुलित मंद तंत्रिका-सक्रियता का श्लैष्मिक प्रकृति (शीत स्वभाव) से, प्रबल अंसतुलित प्रकार का पित्तप्रकृति (कोपशील स्वभाव) से और दुर्बल प्रकार का वातप्रकृति (विषादी स्वभाव) से है।