| 11. | एक पारसैक पॄथ्वी से किसी खगोलीय पिण्ड की दूरी होती है, जब वह पिण्ड एक आर्कसैकिण्ड के दिग्भेद कोण पर होता है.
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| 12. | एक पारसैक पॄथ्वी से किसी खगोलीय पिण्ड की दूरी होती है, जब वह पिण्ड एक आर्कसैकिण्ड के दिग्भेद कोण पर होता है.
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| 13. | किसी खगोलीय पिण्ड का पूर्ण अथवा आंशिक रुप से किसि अन्य पिण्ड से ढ्क जाना या पीछे आ जाना ग्रहण कहलाता है.
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| 14. | किसी भी खगोलीय पिण्ड (जैसे धरती) के वाह्य अन्तरिक्ष का वह भाग जो उस पिण्ड के सतह से दिखाई देता है, वही आकाश (
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| 15. | चाहे भारतीय ज्यतिष हो या पाश्चात्य, इन दोनो का मूलभूत सिद्धान्त यह है कि खगोलीय पिण्ड आपके व्यक्तिगत जीवन पर असर डाल सकते हैं।
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| 16. | आकाश किसी भी खगोलीय पिण्ड (जैसे पृथ्वी) के वाह्य अन्तरिक्ष का वह भाग है जो उस पिण्ड के सतह से दिखाई देता है।
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| 17. | वस्तुतः सूर्य, ग्रह तथा अन्य सभी खगोलीय पिण्ड एक दूसरे को आकर्षित करते रहते हैं तथा इसी आकर्षण बल के सहारे सभी खगोलीय पिण्ड टिके हुए हैं।
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| 18. | वस्तुतः सूर्य, ग्रह तथा अन्य सभी खगोलीय पिण्ड एक दूसरे को आकर्षित करते रहते हैं तथा इसी आकर्षण बल के सहारे सभी खगोलीय पिण्ड टिके हुए हैं।
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| 19. | “ मेरी राय मे इस समय जो उभरता हुआ अंतरराष्ट्रीय मत है उसके अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी खगोलीय पिण्ड के स्वामित्व का दावा नही कर सकता।
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| 20. | खगोलीय पिण्ड के रूप में प्रकाश और कांति अर्थ भी स्पष्ट हो रहे हैं तथा आसमान में इनकी स्थिति ऊंचाई की द्योतक है जिसका भाव पताका में झलक रहा है।
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