| 11. | 12 और मुझे तो तू खराई से सम्भालता, और सर्वदा के लिये अपने सम्मुख स्थिर करता है॥
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| 12. | 1 जो निर्धन खराई से चलता है, वह उस मूर्ख से उत्तम है जो टेढ़ी बातें बोलता है।
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| 13. | सीधे लोग अपनी खराई से अगुवाई पाते हैं, परन्तु विशावास घाती अपने कपट से नष्ट हो जाते हैं।
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| 14. | 2 वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है;
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| 15. | पमरेश् वर न् यायी है, जो दुष् ट और धर्मी मनुष् यों का खराई से न् याय करेगा।
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| 16. | मुझे तो तू ही मेरी खराई में सम्भाले रहता है, और अपने सम्मुख सर्वदा के लिए स्थिर करता है।
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| 17. | और यद्यापि तू ने मुझे उसको बिना कारण सत्यानाश करते को उभारा, तौभी वह अब तक अपक्की खराई पर बना है।
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| 18. | 8 और वह आप ही जगत का न्याय धर्म से करेगा, वह देश देश के लोगों का मुकद्दमा खराई से निपटाएगा॥
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| 19. | इसलिये यहोशू उन् हें यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा, सच् चाई और खराई से करने का आव् हान करता है।
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| 20. | इसी मिलवट ने हमारा चैन खो दिया है, हमारी खराई खो दी है, बहुत से रिशते और पड़ौसी खो दिये हैं।
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