दिग्विजय सिंह का कहना है कि ऐसा कांग्रेस को निशाना बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से जवाब मिलने पर उन्हें खामोश होना पड़ता है.
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बेशक इसमें वक़्त लग सकता है मगर आज घरेलू हिंसा पर बात करके कल से खामोश होना घरेलू हिंसा को बल के सिवा कुछ नहीं देगा और यूं ही इंसानों की बेज़ारियाँ होती रहेंगी.
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मैंने तो कल से ही ख़ामोशी अख्तियार कर रखी है.........और आज आपका ये लेख पढ़ा ऐसा लगा जैसे मेरे लिए ही आपने इसे लिखा है.......... सही कहा आपने विचारो के मंथन के लिए, अपने आप में खोने के लिए, खामोश होना बहुत जरुरी है..............
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ज़बां का खामोश होना सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार दाग देता अपने ही जि़स्म में अनेको शब्द बाण आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में अनंत पलों का संहार कर विषादमय हो बस प्रतीक्षा करता है अंत की अनंत पलों तक '
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ज़बां का खामोश होना सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार दाग देता अपने ही जि़स् म में अनेको शब् द बाण आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में अनंत पलों का संहार कर विषादमय हो बस प्रतीक्षा करता है अंत की अनंत पलों तक
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बड़े होने के बाद हम एकदम उसी तरह खामोश होना सीखते हैं...सबसे पहले जाती है हँसी की आवाज़, खिलखिलाना जिससे कि कमरे खुशगवार हो जाएँ फिर धीरे धीरे जाता है किसी को पुकारना...एक एक शब्द करके हम खामोश होना सीखते हैं और आखिर कर एक ऐसा दिन आता है जब ख़ामोशी हमारे दिल के अन्दर पैठ जाती है.
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बड़े होने के बाद हम एकदम उसी तरह खामोश होना सीखते हैं...सबसे पहले जाती है हँसी की आवाज़, खिलखिलाना जिससे कि कमरे खुशगवार हो जाएँ फिर धीरे धीरे जाता है किसी को पुकारना...एक एक शब्द करके हम खामोश होना सीखते हैं और आखिर कर एक ऐसा दिन आता है जब ख़ामोशी हमारे दिल के अन्दर पैठ जाती है.
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खामोश होना कितना खूबसूरत होता है कभी, सारी बातों को किसी खुले हुए संदूक में रखे पुराने झोले में बंद करके अपने सामने बीतते हुए को चुपचाप निहारते रहना … वक्त का हिस्सा होते हुए भी उसकी आहटों का हिस्सा न होने का फैसला कर लेना … इस तस्वीर को देख के कुछ ऐसा ही तो लगा था।
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इस भीषण भूमंडलीकृत समय में जब वित्तीय पूंजी के नंगे नाच का नेतृत्व सत्ताधारी दलों के माफिया और गुंडे कर रहे हों, जब कारपोरेट लूट में सरकार का साझा हो, तब ऐसे में आम लोगों की ज़िंदगी की तकलीफों से उठने वाली प्रतिरोध की भरोसे की आवाज़ का खामोश होना बेहद दुखद है, अदम गोंडवी को जन संस्कृति मंच अपना सलाम पेश करता है।
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इस भीषण भूमंडलीकृत समय में जब वित्तीय पूंजी के नंगे नाच का नेतृत्व सत्ताधारी दलों के माफिया और गुंडे कर रहे हों, जब कारपोरेट लूट में सरकार का साझा हो, तब ऐसे में आम लोगों की ज़िंदगी की तकलीफों से उठने वाली प्रतिरोध की भरोसे की आवाज़ का खामोश होना बेहद दुखद है, अदम गोंडवी को जन संस्कृति मंच अपना सलाम पेश करता है।