आप सभी के सन्देशों से अभिभूत मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ. एक आशीष मुझको बड़ों ने दिया, दूजे वरदान इक शारदा दे गईकाव्य की वीथियों में उमड़ती हुई, भाव की एक भागीरथी बह गईयोग मेरा तो इसमें नहीं है तनिक,मैने शब्दों से केवल चितेरा उसेमेरी खिड़की की सिल पे आ गाते हुये बात गौरेय्या जो एक है कह ह गईप्रत्युत्तर देंहटाएंनिर्मला कपिला9 अगस्त 2012 9:59