पहले खेती की पद्धति खुदमुख्तार थी यानी उसमें टिकाऊपन था लेकिन हरित क्रांति के दौर में खेती के लिए किसान बीज, खाद, कीटनाशक और मशीन के मामले में बाहरी स्रोतों पर निर्भर होते चले गए जबकि इन चीजों का स्थानीय परिस्थिति से मेल नहीं था।
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मसलन हरित क्रांति से पंजाब के किसानों को खेती की पद्धति बदलने, महंगे उर्वरक, महंगी सिंचाई, महंगे बीज, महंगी मशानों की वजह से उत्पादन लागत में वृद्धि और उसकी तुलना में कृषि उपज की ढीले भाव के जिस अस्तित्व विनाशक संकट से जूझना पड़ा, राष्ट्र ने उसे संबोधित ही नहीं किया।
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शहरों में पुराने तालाबों की जगह बहु मंजिली इमारतों ने ले ली है जिससे भू जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था बिगड़ी है और यह अनियोजित विकास का सटीक उदहारण है पर एक समस्या दूसरी अन्य समस्याओं को जन्म दे रही है |गिरते जल स्तर ने हमें इस विषय पर भी दुबारा सोचने को मजबूर किया है कि हम परपरागत कृषि सिंचाई प्रणाली के बारे में सोचें जिससे जल का सही और अधिकतम उपयोग किया जा सके इसलिए बेहतर जल नीति के लिए खेती की पद्धति और उद्योगों की तकनीक और उनके प्रबंधन पर भी सोचना होगा।
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शहरों में पुराने तालाबों की जगह बहु मंजिली इमारतों ने ले ली है जिससे भू जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था बिगड़ी है और यह अनियोजित विकास का सटीक उदहारण है पर एक समस्या दूसरी अन्य समस्याओं को जन्म दे रही है | गिरते जल स्तर ने हमें इस विषय पर भी दुबारा सोचने को मजबूर किया है कि हम परपरागत कृषि सिंचाई प्रणाली के बारे में सोचें जिससे जल का सही और अधिकतम उपयोग किया जा सके इसलिए बेहतर जल नीति के लिए खेती की पद्धति और उद्योगों की तकनीक और उनके प्रबंधन पर भी सोचना होगा।