दूसरों में खोट निकालना कोई बड़ी बात नहीं है, अगर आप अपनी कमियों को स्वीकार करते हैं तो निश्चित रूप से यह कृत्य प्रशंसनीय है.
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श्री कलाम, इस पत्र को लिखने का मेरा मकसद किसी भी तरीके से आपके लेख में खोट निकालना नहीं, बल्कि अपनी सच्ची मानवीय चिंताओं को प्रकट करना है।
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जाहिर सी बात है कि उनकी सहमति से बनी फिल्म में खोट निकालना मुश्किल काम होगा? ऐसा नहीं है कि मैं जो भी फिल्म बनाऊंगा, वह कामयाब ही होगी।
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दूसरों के खोट निकालना ज्ञान है या मुर्खता? क्या इसी मुर्खता से अक्सर पैदा नहीं होती है बर्बता? ज़हर से भरी छींटा-कशी,ऐसे अलफ़ाज़ कहाँ से लाते हैं?इतनी कड़वाहट, हे इश्वर!मरने मारने का जज़्बा कहाँ से लाते हैं?
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विवाह संस्था परंपरा-प्रदत्त है, एकाएक नहीं मिटने वाली है यह और हायतोबा करते हुए एकमात्र लक्ष्य उसे मिटाना-जलाना होना भी नहीं चाहिए पर सहज ही इस संस्था के समानांतर ' लिव-इन ' व्यवस्था आ रही है तो इसमें परम्परा और संस्कृति के नाम पर खामखा खोट निकालना भी उचित नहीं होगा..