जिस शुभ रात्रि में जिस समय गर्भाधान करना हो उस समय पति और पत्नी को स्वयं को आचमन आदि से शुद्ध कर लेना चाहिए।
12.
गर्भाधान संस्कार की दयानन्दी रीति ” जिस रात गर्भाधान करना हो उस दिन हवन आदि करे और वहां निर्दिष्ट 20 मंत्रों से घी की आहुतियां दे।
13.
गर्भाधान हेतु शुभ समय का विचार नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रोहिणी, स्वाति, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, इन 11 नक्षत्रों में गर्भाधान करना उत्तम होता है।
14.
अपने यहाँ स्वस्थ, तंदरुस्त और पुण्यात्मा बालक का जन्म हो इस हेतु सभी दम्पत्तियों को जप, अनुष्ठान, रामायण एवं श्री गुरुगीता का पाठ करके गर्भाधान करना चाहिए।
15.
छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।
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छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।
17.
जब किसी पति को गर्भाधान करना होता है या अपनी पत्नि से किसी अन्य पुरूष का नियोग करवाना होता है तो वह 4 पंडितों को बुलवाता है और वे चारों पंडित पूरे दिन बैठकर वेदमंत्र पढ़ते हैं।
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छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।
19.
मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये, भूल कर भी शनिवार मंगलवार गुरुवार को पुत्र प्राप्ति के लिये संगम नही करना चाहिये।
20.
अब इसका पालन कोई कोई ज्ञानी टाइप ही करता है जबकि पहले इसका चलन अमीर आर्यों में आम था ।गर्भाधान संस्कार की दयानन्दी रीति”जिस रात गर्भाधान करना हो उस दिन हवन आदि करे और वहां निर्दिष्ट 20 मंत्रों से घी की आहुतियां दे।