सामायिक करने से यह जीव निर्दोष और निष्पाप हो जाता है, सभी सावद्य योगों से मुक्त हो जाता है, बशर्ते यह सामायिक पूरे विधि-विधान पूर्वक हो और सामायिक में लगातार हम अपना अन्तरावलोकन कर पापों का प्रकाशन और पापों का पश्चात्ताप और पापों का विसर्जन यानी गर्हा करें।
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आज वही अहसास, मुझे मेरा भाग्य मुझ पर बरस रहा है तथा मुझे पल-प्रतिपल मजबूर कर रहा है खून के आँसू पीने के लिए उन अपराधों की निंदा, गर्हा, आलोचना करने को तथा प्रायश्चित के माध्यम से आत्मा में आए कठोर एवं दूषित परिणाम निकालने को।
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यह विचार प्रकट करते हुए प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी म. स ा. ने आज यहां कहा कि सामायिक के दौरान नियमित रूप से प्रतिक्रमण करें, अर्थ और भाव सहित उसे समझें, उस दौरान चिंतन-मनन पूर्वक अपने कृत पापों को खोज-खोजकर उनकी निंदा करें, पश्चात्ताप करें और धीर-गंभीर गुरुभगवंतों के सान्निध्य में उनकी गर्हा करें, उनसे प्रायश्चित्त लें।