मुझे पटियाला हाउस वीकएंड पर परिवार के साथ जाकर देखने वाली फिल्म लगी, तो अगर आप बहुत दिनों से बेसिर पैर की कामेडी और गाली गलौच से भरा बोरिंग रियलिस्टिक सिनेमा देख कर थक गए हो तो पटियाला हाउस की सैर कर सकते है. मैं ‘ पटियाला हाउस ' को पांच में तीन अंक देता हूं।
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यही कारण था कि वो चाय की दूकान पर नौकरी अधिक दिन न् कर सका और मालिक की गाली गलौच से परेशान हो कर दिल्ली आ गया जहाँ उसने अथक मेहनत कर के कुछ रूपये जोड़ लिए … अपनी दमित इच्छाओं के वशीभूत ब्रह्मपाल ने जीविकोपार्जन के लिए बम्बई का रुख किया और मेहनत करते हुए परिवार को पैसे भेजता रहा …