धूप ख़ुशगवार थी, फलों के पकने का मौसम था, फसलें खलिहानों में आ चुकी थीं और जाती हुई गर्मियों में गुनगुनापन बाक़ी था।
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इस दृष्टि में सुबह की धूप का गुनगुनापन दोपहर की प्रचंडता तो है ही, शाम की ललछौंही आभाएं भी अपनी प्राकृत मुस्कानें बिखेर रही हैं।
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कभी यह गर्माहट लाता है तो कभी इसका नर्म गुनगुनापन गुदगुदाता है, कभी बसंत की छटा आँखों के सामने तैरती है तो कभी ठण्डी सफेद बर्फ एक चादर बनकर हर तरफ हर चीज को अपने सर्द अस्तित्व के तले दबा देती है।
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कभी यह गर्माहट लाता है तो कभी इसका नर्म गुनगुनापन गुदगुदाता है, कभी बसंत की छटा आँखों के सामने तैरती है तो कभी ठण्डी सफेद बर्फ एक चादर बनकर हर तरफ हर चीज को अपने सर्द अस्तित्व के तले दबा देती है।
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आवारा कुत्ते ' कहकर दुत्कार दिए जाते थे घंटों हम तीनों अलाव तापते रहे वो आपस में खिलवाड़ करते रहे मैं गुनगुनेपन और धुएं के बीच गुनगुनापन चुनता रहा और सोचता रहा जो समाजवाद लेनिन-माओ नहीं ला पाए वो दिल्ली की सर्दी ले आई …
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मशालें हमें वैसी ही प्यारी हैं जैसी हमें भोर मशालें जिन्हें लेकर हम गाढ़े अंधेरों को चीरते हैं और बिखरे हुए अजीजों को ढूंढते हैं सफ़र के लिए मशालें जिनकी रोशनी में हम पाठ्य पुस्तकें पढ़ते हैं वैसे ही पनीले रंग हैं इनकी आंच के...जैसे हमारी भोर के होंगे लहू का वही गुनगुनापन ताज़ा...बरसता हुआ... मशालें हमें वैसी ही प्यारी हैं जैसी हमें भोर (1976)---------धीरेश सैनी की ज़िद्दी धुन से साभार....