सभी भावों को देखकर ही गुलिका का कथन करना चाहिये, कभी एक भाव और ग्रह को देखकर गुलिका का फ़लकथन नही करना चाहिये।
12.
सारे स्कंध को ढके हुए बलवान अंसच्छदा (deltoideus) पेशी है, जो अंसफल के कंटक (spine), अंसकूट (acromion) और जत्रुक (clavicle) से निकल कर, एक कंडरा द्वारा प्रगंडास्थि के लगभग मध्य में एक गुलिका (tubercle) पर लग जाती है।
13.
गुलिका का भावात्मक अर्थ पाने के लिये भचक्र की राशियों का प्रभाव भी देखना जरूरी होता है, भचक्र की राशि अगर गुलिका के विपरीत गुणों वाली है तो गुलिका नुक्सान की जगह पर फ़ायदा देने वाली मानी जायेगी।
14.
गुलिका का भावात्मक अर्थ पाने के लिये भचक्र की राशियों का प्रभाव भी देखना जरूरी होता है, भचक्र की राशि अगर गुलिका के विपरीत गुणों वाली है तो गुलिका नुक्सान की जगह पर फ़ायदा देने वाली मानी जायेगी।
15.
गुलिका का भावात्मक अर्थ पाने के लिये भचक्र की राशियों का प्रभाव भी देखना जरूरी होता है, भचक्र की राशि अगर गुलिका के विपरीत गुणों वाली है तो गुलिका नुक्सान की जगह पर फ़ायदा देने वाली मानी जायेगी।
16.
शनि को अन्धेरे के लिये प्रयोग किया जाता है, शनि की सिफ़्त ठंडी भी है, शनि कठोर भी है, उसी जैसी सिफ़्त गुलिका के पास भी है, वह शुरु और अन्त में अपना असर देती है।
17.
(ड.) लम्बे समय तक यदि किसी एक स्वर को चलाने की आवश्यकता पड़े तो उक्त तरीकों से स्वर बदल कर शुध्द रूई की छोटी गोली बनाकर साफ कपड़े से लपेट कर सिली हुई गुलिका द्वारा एक नाक को बन्द कर देना चाहिए।
18.
के ऊपर के पिंडक से निकलकर, सारी बाहु के सामने होती हुई नीचे जाकर, कंडरा में अंत हो जाती हैं, जो कुहनी के सामने से निकलकर, अग्रबाहु के ऊर्ध्व भाग मे बहिष्प्रकोष्ठास्थि के शिर से नीचे स्थित गुलिका के खुरदरे भाग पर लग जाती है।
19.
वर्षफ़ल से गुलिका जब मृत्यु भाव में आजाती है तो अजीब वस्तुओं से धन प्रदान करवाती है, नवें भाव में गुलिका वर्षफ़ल से जाती है तो घूमने फ़िरने में ही पूरा साल बिताने को मजबूर करती है, केतु के साथ भटकाव और राहु के साथ मृत्यु वाले उपक्रम करने को बल देती है।
20.
वर्षफ़ल से गुलिका जब मृत्यु भाव में आजाती है तो अजीब वस्तुओं से धन प्रदान करवाती है, नवें भाव में गुलिका वर्षफ़ल से जाती है तो घूमने फ़िरने में ही पूरा साल बिताने को मजबूर करती है, केतु के साथ भटकाव और राहु के साथ मृत्यु वाले उपक्रम करने को बल देती है।