बचपन की अपनी उस हवेली की झूठी, सामंती मर्यादाओं को गेंती और फावड़े से झाड़-बुहार कर हवेली से बाहर एक नया 'वातायनी' घर बनाया था पिता ने।
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बचपन की अपनी उस हवेली की झूठी, सामंती मर्यादाओं को गेंती और फावड़े से झाड़-बुहार कर हवेली से बाहर एक नया ' वातायनी ' घर बनाया था पिता ने।
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सफाई के सारे उपकरण-झाड़ू, फावड़े, गेंती, गढ़े कपड़ों को खींचने के लिए विशेष सरिये, कूड़ा उठाने के लिए विशेष हत्थे बनाये बोरे सभी शांतिकुंज से साथ लाये गये थे।
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और नगरपालिका प्रशासन के ना मानने ले बावजूद किसान लो गों के द्वारा हाथों में गेंती, फावडे, कूंट, लट्ठ आदि हथियारों सहित शहर को बन्द करवाने का आव्हान किया गया था ।
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एक ओर जहां गांव की युवा पीढ़ी से लेकर बड़े-बुजुर्गों ने फांवड़ा, गेंती व तगाड़ी लेकर श्रमदान किया है वहीं दूसरी ओर यहां के एक दर्जन से अधिक लोगों ने अपने-अपने ट्रेक्टर तालाब की खुदाई में लगाये हैं ।
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-नाजुक हाथ में कलम चाहिये पकड़ा देते खुरपी और गेंती मन के अन्दर शर्म न आती ये है उनकी खुद की बच्ची घर के कहते लोग सब क्यो करोगी पढ़ाई तुम्हें नौकरी तो करना नहीं है करना है निनाण और गुड़ाई ……..
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कृशि के करने के लिये तमाम हल खुरपे फावङे दराँती पंचा पचा थ्रेसर बखर पटेला नाल कुदाल गेंती गँडासा कुल्हाङी मूसर कोल्हू कंटर ओखली बिरबार बरमा सब्बल हँसिया पहसुल और इनकी पजाई धार धराई बेंट डलाई में लगता पैसा भी कर्ज से चलता है ।
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हम रहते हैं फूस के टूटे छाजनों में जो उड़ जाते हैं तूफान में भीतर कुछ नहीं बस कुछ फूटी खाटें इस तरह हम हैं मरने का करते इंतजार बेहतर यही चलो उठाओ अपनी गेंती निकल चलो बाहर एक साथ खदान मालिक के पीछे पीछे
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खटिया के नीचे था रहस्यमय संसार खाली बोरे, खाद की थैलियों के बंडल, कुछ पल्लियां जब अनाज पैदा होता तो इन्हीं में बरसता सब्जियां मंडी जातीं तो इन्हीं में इनके सहयोगी होते कुछ टोकनियां, छबलिये और बड़े डाले, गेंती, फावड़े, कुल्हाड़ी दरांते, सांग, खुरपियां कितना कुछ था इस टापरी के भीतर खेती किसानी का पूरा टूलबॉक्स
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इसी कविता में वे एक जगह कहते हैः“हम वह फावड़ा, कढ़ाई, पांव/ जो अतलांत तक जाकर/ समाधि दें/झंखाड़ मलबे को,/संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण/कुछ भी हैं/तो हम केवल कुम्हार/ तब तक फिराएं चाक/ बन जाए यह धरती ही/ रोशनी से पुता/ वातायनी घर,/ हमारी अंगुलियों की छुअन से होता रहे/ अहल्या का रचाव सीता में,/ हमारा मन हिलकता पारदर्शी जल/ दिखे-देखें एक सा हीं।”बचपन की अपनी उस हवेली की झूठी, सामंती मर्यादाओं को गेंती और फावड़े से झाड़-बुहार कर हवेली से बाहर एक नया 'वातायनी' घर बनाया था पिता ने।