ग्रंथकार ने अलंकारों के प्रकरण में भट्टि, भामह, दंडी और रुद्रट आदि द्वारा आविष्कृत कुछ ऐसे अलंकारों को भी स्थान दिया है जिनके ऊपर ग्रंथाकार के पूर्ववर्ती और अलंकारों के आविष्कारकों के परवर्ती मम्मट आदि विद्वानों ने कुछ भी विचार नहीं किया है।
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इस ग्रंथाकार विशेषांक में उत्तरभारत के विभिन्न शहरों से कौन से लोग, कब और कैसे आये उसका इतिहास तथा किस तरह संघर्षों के वर्षों से गुजरते हुए उन्होंने इस महानगर के बहुरंगी सांस्कृतिक, सामाजिक, व्यापारिक, शैक्षिक तथा औद्योगिक कैनवस पर अपना स्थान बनाया है, उसकी रोमांचक गाथा शामिल की गयी है.
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जैसा कि आप जानते हैं कि मुंबई से प्रकाशित राष्ट्रीय हिंदी साप्ताहिक ‘ नूतन सवेरा ' ने कुछ वर्ष पूर्व (2001 में) प्रवासी राजस्थानी शख्सियतों पर एक शानदार ग्रंथाकार विशेषांक (मिनी इन साइक्लोपीडिया) ‘ मुंबई में राजस्थान ' प्रकाशित किया था, जिसमें मुंबई में बसी राजस्थानी समाज की उन प्रतिष्ठित हस्तियों का ब्यौरा प्रस्तुत किया गया था.