में एक ऐसे समय में अवतरित हुए थे, जब कला के सिर्फ दो छोर थे-एक तो था, 'शास्त्र‘, जो सामंतयुगीन उच्चवर्ग के अधीन था और दूसरा था 'लोक`, जो ग्रामीण जनसमुदाय के बीच ही अपना सर्वस्व जोड़े हुए था।
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राजा रवि वर्मा भारतीय कलाजगत में एक ऐसे समय में अवतरित हुए थे, जब कला के सिर्फ दो छोर थे-एक तो था, 'शास्त्र‘, जो सामंतयुगीन उच्चवर्ग के अधीन था और दूसरा था 'लोक`, जो ग्रामीण जनसमुदाय के बीच ही अपना सर्वस्व जोड़े हुए था।
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राजा रवि वर्मा भारतीय कलाजगत में एक ऐसे समय में अवतरित हुए थे, जब कला के सिर्फ दो छोर थे-एक तो था, ' शास्त्र ‘, जो सामंतयुगीन उच्चवर्ग के अधीन था और दूसरा था ' लोक `, जो ग्रामीण जनसमुदाय के बीच ही अपना सर्वस्व जोड़े हुए था।