यह अवस्था अंत में प्राय: दीर्घदृष्टि संकीर्ण कोण आँख में हो जाती है, अत: इसे संकीर्ण कोण ग्लॉकोमा या संवृत कोण (
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भोपाल. पिछले कुछ सालों से भोपाल में लोगों को हमेशा के लिए अंधा बना देने वाली बीमारी ग्लॉकोमा (काला पानी) का प्रकोप बढ़ रहा है।
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वल्र्ड ग्लॉकोमा एसोसिएशन द्वारा हाल ही में कराए गए सर्वे में भी इस बात को सिद्ध किया है कि इस रोग के मरीज बढ़ रहे हैं।
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ललित श्रीवास्तव ने भास्कर को बताया कि हाल ही में ग्लॉकोमा के लिए भारत में कराए गए सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं भोपाल की स्थिति भी वैसी ही है।
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कंपनी में इस हिस्सेदारी के बाउ नोवार्तिस की बिक्री में 5. 6 अरब डॉलर का इजाफा होने की उम्मीद है और इसके साथ ही कांटेक्ट लेंस के उपचार, ग्लॉकोमा दवाएं और कैट्रेक्ट सर्जरी उत्पाद के क्षेत्र में नोवार्तिस की दखल हो जाएगी।
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तिरोधायक जीन के दोष से मोतियाबिंद (आँख के ताल का अपारदर्शक हो जाना), अति निकटदृष्टि (दूर की वस्तु का स्पष्ट न दिखाई देना), ग्लॉकोमा (आँख के भीतर अधिक दाब और उससे होनेवाली अंधता), दीर्घदृष्टि (पास की वस्तु स्पष्ट न दिखाई पड़ना) इत्यादि रोग होते हैं।
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तिरोधायक जीन के दोष से मोतियाबिंद (आँख के ताल का अपारदर्शक हो जाना), अति निकटदृष्टि (दूर की वस्तु का स्पष्ट न दिखाई देना), ग्लॉकोमा (आँख के भीतर अधिक दाब और उससे होनेवाली अंधता), दीर्घदृष्टि (पास की वस्तु स्पष्ट न दिखाई पड़ना) इत्यादि रोग होते हैं।
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वैसे इस आंखों की बीमारी के मरीज सारे देश और प्रदेश में भी हैं लेकिन राजधानी के नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार पहले जहां 100 में से दो मरीजों को इस बीमारी का सामना करना पड़ता था अब लगभग 4 से 6 मरीज ऐसे होते हैं जो कि 40 की उम्र के बाद कम दिखाई देने की शिकायत लेकर आ रहे हैं, जो कि ग्लॉकोमा का सबसे पहला लक्षण है।