बाजे के साथ श्रृंगार किये हुए ग्वालों का समूह घर घर जाकर नृत्य करता है जिसे ' जोहारना' कहा जाता है 'ठाकुर जोहारे आयेन....
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ग्वालों का विश्वास है कि वे यदुवंशी कृष्ण के वंशज है इसलिए वे परंपरागत रूप से इस त्यौहार को मनाते आ रहे हैं जो संपूर्ण छत्तीसगढ में मनाया जाता है।
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ग्वालों का उपसर्ग, संगम देव के कष्ट, शूलपाणि यक्ष का परिषह, चण्डकौशिक का डंक, व्यन्तरी के उपसर्ग, भगवान महावीर की समता एवं सहनशीलता के असाधारण उदाहरण हैं।
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गोकुल बृज में ग्वालों का गाँव है यह इस तरह था कि वह ग्वालों के सुखी सहयोग में उनके पोषक अभिभावकों नन्द और यशोदा की कोमल देख-रेख में पुरूषार्थ की ओर बढ़े।
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(5) प्रेमभाव सबसे महत्त्वपूर्ण भाव है, इसमें ऋषि का शान्तभाव हनुमान का दासभाव, ग्वालों का सखाभाव और यशोदा का वात्सल्य भाव और बाललीलाएँ सब मौजूद हैं, साथ ही प्रेमीभक्त की आत्मा-परमात्मा में समाहित होकर उसी की हो जाती हैं।
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सुबह सवेरे मंदिर में वो मन्त्रों का जाप * *सांझ ढले दूर से आती वो ढोलक की थाप* *भोर में कानों में पड़ता वो ग्वालों का गान * *सांझ ढले चौपालों पर वो आल्हा की तान * *बीच गाँव में पीपल की वो ठंडी-ठंडी छाँव..
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उसके लिए बिला गए हैं अब छायादार पेड़ जिनके नीचे हरी घास उगी हो पास में पानी के डाबरे और साफ़ हवा सहलाती उसका तन ग्वालों का अपने हाथ से खुजलाना और डाँस निकालना उनकी देह से भक्ति से की गई वह सारी सेवा अब नहीं है उसके लिए।
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इस दिन प्रात: काल गौओं का स्नान करे तथा गंध-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रलंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाएं तो सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है।