सपने एक बहुत तेज़ भागती रील हो गयी है जिनके चित्रों को किसी मसखरे ने बेतरतीब जोड़ रखा है. एक बहुत ऊंचा शिखर दिखाई देता है.नोकदार. जिसके दूसरी ओर सिर्फ जानलेवा ढलानें हैं.पृथ्वी अपनी कील पर लट्टू सी घूमती है.लगता है उसका भी घूर्णन काल गडबडा गया है, एक डर सा लगता है,कहीं कील से ये फिरकनी दूर न जा गिरे.खगोलीय नियमों की गणितीय सटीकता एक भ्रम लगने लगती है.पूरे ब्रह्माण्ड की यांत्रिक गडबड़ी की शुरुआत यहीं से हुई महसूस होती है.