चौथा-चोरी, रिष्टि या गॄह-अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्ति रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मॄत्यु या घोर उपहति होगा ।
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इसी प्रकार धारा-338भा0दं0सं0 में भी उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करके मानव जीवन को संकट उत्पन्न करने और किसी व्यक्ति को घोर उपहति करने के फलस्वरूप अपराधी व्यक्ति को दोनों भांति के कारावास, जिसकी अवधि 1वर्ष तक हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपए तक हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
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99. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है-यदि कोई कार्य, जिससे मॄत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद््भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि-अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो ।
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प्रस्तुत मामले में न्यायालय को यह देखना है कि क्या अभियुक्तगण दिनांकः26-5-2003 की सायं, समय लगभग-4ः30बजे स्थान-ग्राम दुर्गापीपल में अपने हाथों में लाठी-डण्डे, दराती व पत्थर लेकर विधि विरूद्ध जमाव निर्माण कर अपने सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बलवा, हिंसा का प्रयोग कर बलवा कारित करने में सदस्य रहे और अभियुक्तगण ने वादी नारायण सिहं के चचेरे भाई जमन सिहं के ऊपर लाठी-डण्डो, दराती व पत्थर से जानलेवा हमला कर दिया और जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर गिर गया, जिससे उसे घोर उपहति कारित हुई?