चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है।
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चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है।
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चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष् ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है।
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बाइसवाँ अध्याय-बाइसवें अध्याय में चंद्रमा की कला एवं सृष्टि ब्रह्मांड के अन्य ग्रह, नक्षत्रों के साथ उसका वर्णन किया गया है।
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कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतार कर निचोड़ा और देवगणों से बोले, यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है।
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वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है।
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आकाश से उतरते हुए पीली जटावाले, कंधे पर चंद्रमा की कला के समान उजला जनेऊ और गले में मोतियों की माला पहने, वह ऐसे लगते थे जैसे सुनहरी शाखावाला कोई चलता-फिरता कल्पवृक्ष चला आ रहा हो।
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सुना, रूस में हो गई, है चांद एक दिन... (रामधारी सिंह 'दिनकर') विशेष नोट: बच्चों के लिए यह कविता अच्छी रहेगी, मधुर भी है, और इसके जरिये उन्हें चंद्रमा की कला के बारे में भी जानकारी दी जा सकती है...
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इन चौपाइयों में मेघों का श्याम होना, राहु, केतु का काला (झुलसा-सा) होना, सूर्य का तपना, चंद्रमा की कला का खंडित होना, पलाश के फूलों का लाल (दहकते अंगारे-सा) होना आदि सत्य हैं।
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ज्योतिषाचार्यों अनुसार ग्रहों की गति और चंद्रमा की कला जो सूर्य से इसकी निकटता और दूरी पर निर्भर करती है इनका भूचक्र में मौजूद 12 राशियों एवं 27 नक्षत्रों पर प्रभाव होता है जिनसे हरेक व्यक्ति पर एक ही समय में अलग-अगल प्रभाव पड़ता है।